वेद प्रकाश भारद्वाज
समकालीन कला में जब कलाकार लगातार बाजारोन्मुखी होकर अपनी रचनात्मकता के साथ समझौते कर रहे हैं तब ऐसे कलाकार से, जो केवल अपनी शर्तों पर काम करता है और कला को समकालीन यथार्थ पर एक तीखी टिप्पणी में बदलता है, मिलना और उसके काम को लेकर संवाद करना एक सुखद अनुभूति देता है। राजश चंद के काम से मैं पिछले कई सालों से परिचित रहा हूं और उन पर लिखने का मन भी रहा और अब समय आया है जब हमें एक ऐसे कलाकार के बारे में कुछ जानना चाहिए जो अपने समय और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को महसूस करता है और अपनी कला के माध्यम से उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।
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राजेश चन्द |
सांकेतिक होकर भी उनकी कृतियां कलाकार की अपने समय के बारे में जो चिंताएं हैं उन्हें तो सामने रखती ही हैं साथ ही देखने वालों को कई तरह के विमर्ष के लिए भी उकसाती हैं। अपनी कला के अलावा भी वे कला कार्यक्रमों के माध्यम से कला को समाज से जोड़ने का और कला में समसामयिक ज्वलंत विषयों को उठाने का काम करते रहे हैं जो यह साबित करता है कि वे केवल रचने में ही नहीं बल्कि रचना जगत से बाहर भी प्रतिबद्ध हैं।
एक कलाकार में राजेश की कला यात्रा भी सामान्य विषयों के साथ हुई थी। अपने आरम्भिक चित्रों में उन्होंने प्रकृति के मनोहारी दृश्यों और मानवीय भावनाओं को आकार दिया। उनके उस समय के कई कामों में एक तरह से वही नैसर्गिक अनगढता थी जो बिहार की लोक कलाओं की थाति है। परन्तु धीरे-धीरे उनके विषय समाज के अधिक निकट आते चले गये। एक समय उन्होंने राजनीतिक और प्रशासनिक विसंगतियों पर अपने चित्रों के माध्यम से आलोचनात्मक टिप्पणि की। इसी प्रकार उन्होंने सांप्रदायिक दंगों से लेकर पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं को न केवल अपने चित्रों में जगह दी बल्कि अन्य कलाकारों को भी कला को समाज सजग बनाने की पहल की। इसके लिए उन्होंने संगठन बनाया और कार्यशालाओं व कला प्रदर्शनियों का आयोजन किये।
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City Morning, 40 x 40 inch, Mix Media |
राजेश यदि कला के क्षेत्र में नहीं आते तब भी एक बात यकीन से कही जा सकती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में उसी तरह समाज को लेकर काम कर रहे होते जिस तरह कला में कर रहे हैं। उनका कला के क्षेत्र में आना वैसे तो आकस्मिक ही था परंतु उनके कला कर्म को देखकर कहा जा सकता है कि यही उनकी मंजिल थी। कला के क्षेत्र में अपने आने के बारे में वे बताते हैं कि वे भी आम बच्चों की तरह चित्र बनाते थे परंतु कलाकार क्या होता है या उन्हें कलाकार बनना है यह कभी सोचा नहीं था। उनके पिता सरकारी इंजीनियर थे। आमतौर पर होता यह है कि पिता जिस क्षेत्र में होते हैं अपने बेटे को भी उसी क्षेत्र में भेजना चाहते हैं परंतु राजेश के पिता ऐसे नहीं थे। उन्होंने एक दिन पटना में कला महाविद्यालय का बोर्ड देखा और राजेश से कहा कि वहां जाकर मालूम करें कि वहां क्या सिखाया जाता है। राजेश जब कालेज पहुंचे तो वहां एक बडी प्रदर्शनी लगी हुई थी। उन्होंने पहली बार पेंटिंग देखीं और उनकी तरफ आकर्षित हुए। पहले ही प्रयास में उन्हें कालेज में प्रवेश भी मिल गया। कला शिक्षा के तीसरे साल में ही उन्होंने साहस दिखाया और अपनी पहली एकल प्रदर्शनी की।
बिहार में कला महाविद्यालय होने और वहां कई ख्याति प्राप्त चित्रकारों के होने के बाद भी ऐसा वातावरण और सुविधाएं नहीं थीं जिनसे कलाकार अपनी कला को आगे बढा सकें। ऐसे में राजेश ने कलाकारों को एकजूट कर सामूहिक प्रयासों से संगठनात्मक काम किये और कला शिविरों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया। सांप्रदायिकता, प्रशासनिक और राजनीतिक विसंगतियां व अन्य कई विषयों पर कलाकारों को एकजूट कर आयोजन किये। परन्तु इन सबसे राजेश के वे सपने पूरे नहीं हो पा रहे थे जो उन्होंने एक कलाकार के रूप में वे देख रहे थे। इसलिए उन्होंने दिल्ली का रास्ता पकडा। जब वे दिल्ली पहुंचे तो उनकी कला का दुनिया का विस्तार हो गया। जैसे कागज पर या छोटे कैनवास से कोई बडे कैनवास पर काम करने लगे। यहां आकर एक तो उन्हें कला जगत से अधिक निकटता से जुडने का मौका मिला। अब उनके सामने एक विशाल कैनवास था जिसमें अनेक विषय आकार पाने को बेताब थे। जब वे दिल्ली आये तो उन दिनों सचिन तेंदुलकर की धूम थी। उन्होंने उनसे प्रभावित होकर क्रिकेट पर कई पेंटिंग बनायीं। पर वे हुसेन तो थे नहीं कि उन्हें हाथों-हाथ लिया जाता। पर राजेश को इस बात का मलाल नहीं है।
दिल्ली आकर राजेश ने तैल रंग में काम करना शुरू किया। आरम्भ में उन्होंने जो चित्र बनाये उनमें उन्होंने एक तरह से अपने उस समय तक के उन अनुभवों को रचा जिनका सीधा संबंध उनके गृह प्रदेश बिहार और उसके ग्रामीण अंचलों से था। उस समय के उनके अनेक चित्रों में ठेठ भारतीय नारी का भारतीय परिवेश में चित्रण था। उस समय के कई चित्र तो एकदम ठेठ ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं। इसी दौर में राजेश की कला ने एक और मोड लिया जब उन्होंने अपनी यथार्थवादी आकारिक शैली को बदलते हुए उसमें आकारों की रचना में एक तरह का लोक कला का स्पर्श दिया। इस तरह के चित्रों में एक तरह का हास्य या कहें कि खिलंदडपन है जिसके पीछे कहीं ंन कहीं एक तरह का व्यंग्य छिपा कहा जा सकता है। यह अलग बात है कि राजेश ने उस व्यंग्य को अपना मुख्य कथ्य नहीं बनाया। परन्तु धीरे-धीरे उनके कैनवास पर महानगरीय अनुभव स्थान पाने लगे। उन्होंने नागर सभ्यता को केन्द्र में रखते हुए अनेक चित्रों की रचना की। ऐसे चित्रों में उन्होंने महानगरों में रहने वाली स्त्री को आधुनिक रूप में चित्रित किया। ऐसे ही एक चित्र में उन्होंने एक आधुनिका को सिगरेट पीते दिखाया तो दूसरे में अपनी अस्मिता और आधुनिकता के द्वन्द्व में फंसी स्त्री को भी चित्रित किया। जीवन के विरोधाभास वैसे भी राजेश के प्रिय विषय रहे हैं चाहे वे राजनीतिक हों या प्रशासनिक या फिर सामाजिक।
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Exchange, 36X36 inch, Oil on Canvas |
आरम्भ में उनके सरोकार स्थानीय रहे परन्तु धीरे-धीरे उनका वैचारिक आधार व्यापक होता गया और उन्होंने उन विषयों को अपनाया जो सम्पूर्ण मानवीय समाज के ज्वलंत प्रश्न बन गये हैं। ऐसे ही प्रश्नों में से एक ग्लोबल वार्मिंग का है। हम सभी जानते हैं कि आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्यावरणीय संकट से दो-चार है। इस विषय को लेकर दुनियाभर के कलाकार काम कर रहे हैं परन्तु उनमें से अधितर विषय के निर्वाह के चक्कर में पेंटिंग को अक्सर साधारण अखबारी रेखाचित्र में बदल देते हैं। राजेश के साथ ऐसा नहीं है। बल्कि यह कहा जाए कि राजेश साधारण चीजों को भी एक विशेष संदर्भ में बदल कर उन्हें नया अर्थ प्रदान कर देते हैं। इस संदर्भ में उनकी ग्लोबल वार्मिंग को लेकर बनायी गयी पेंटिंगों को देखा जा सकता है जिनमें उन्होंने माचीस जैसी साधारण चीज को एक अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति में बदल दिया है। उनकी ग्लोबल वार्मिंग श्रृंखला की पेंटिंगों को देखें तो एक तरफ उनमें पिघलती पृथ्वी है तो दूसरी तरफ जीवन और विनाश दोनों संदर्भों मे माचीस है। माचीस की एक तीली जीवन को रौशन करती है तो उसी का गलत इस्तेमाल जीवन में अंधेरा भी कर सकता है। अपनी ‘हाट रेन’ कृति में कलाकार ने आकाश से पानी की जगह माचीस की तीलियों को गिरते दिखाया है। आकाश से जो पानी बरसता है वह पहले पृथ्वी से आकाश में जाता है फिर वापस आता है। अब अगर आकाश से माचीस की तीलियां बरस रही हैं तो इसीलिए कि मनुष्य ने ही उन्हें आकाश में भेजा है। एक तरफ हाट रेन है तो दूसरी तरफ एक अन्य पेंटिंग सुनहरा भविष्य है जिसमें माचीस में से सुनहरे अंकुरण के माध्यम से राजेश ने उसके सकारात्मक पक्ष को रचा है। परन्तु इससे हम यह दावा नहीं कर सकते कि राजेश किसी तरह के कृत्रिम आशावाद को रच रहे हैं। वे आशावादी हैं इसमें कोई शक नहीं क्योंकि आशावादी हुए बिना दुनिया आगे नहीं बढ सकती। पर यहां राजेश का आशावाद लगातार उन स्थितियों पर एक तीखी टिप्पणी की तरह सामने आता है। मेल्टिंग अर्थ, हाट टाय, हाट जर्नी आदि चित्रों में वे माचिस को अपना प्रमुख प्रतीक बनाकर एक त्रासद यथार्थ को सामने लाते हैं।
इसी श्रृंखला के एक चित्र आश्रय में राजेश ने एक खाली माचीस में बैठे कबूतर को दिखाया है तो हाट फारेस्ट में पेडों की जगह माचीस की तीलियों को रचा है। इसी तरह के एक चित्र में उन्होंने ठूठ पेड के साथ माचीस की तीलियों की रचना की है जो अधिक अर्थपूर्ण है। दरअसल जो-जो वस्तुएं, चाहे वे प्रकृतिप्रदत्त हों या मानव निर्मित, उन्हें मनुष्य ने अपने कर्मों से ही वरदान से अभिशाप में बदल दिया है राजेश के काम में लगातार प्रेक्षकों पर एक मीठी चोट करती प्रतीत होती हैं। राजेश अपने रचनाकर्म में लगातार इस पर निगाह रखते हैं और अपनी तरफ से यथार्थ को अनावृत्त कर सामने लाते हैं। यह बात उनकी संघर्ष और एक्सचेंज जैसी पेंटिंगों में अधिक मुखर होकर सामने आती है। विशेष रूप से एक्सचेंज चित्र में जिसमें उन्होंने चित्र के निचले हिस्से में माचीस की तीलियों में प्रकृति की खूबसूरती को फूलों, तितलियों, मछलियों आदि से सांकेतिक अभिव्यक्ति दी है तो ऊपरी भाग में तीली के मसाले वाले हिस्से में उन मानवनिर्मितियों को रचा है जिनके कारण मानव सभ्यता का अस्तित्व ही खतरे में पड गया है।
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अपनी कृति के साथ राजेश |
यहां इस बात की भी तारीफ करनी होगी कि राजेश अपनी कृतियों को किसी भी तरह की नारेबाजी से बचाने में कामयाब रहे हैं। इसकी एक खास वजह है और वह यह कि राजेश यथार्थवादी शैली में काम करते हुए भी अपने चित्रों को उसकी सम्पूर्ण संरचना में अमूर्तन तक ले जाते हैं। इसके लिए उन्होंने एक तरफ अपनी कृतियों की पृष्ठभूमि को अमूर्तन की तरह रचा है तो साथ ही कई चित्रों में वे उसी पृष्ठभूमि में ऐसे मोटिफ रचते हैं जो भारतीय लघु चित्रकला से लेकर आदिवासी और लोककलाओं तक की याद दिलाते हैं। किसी कलाकार की रचनाओं में भाव-स्तर के साथ-साथ वस्तु-स्तर पर भी आकार के साथ अमूर्तन का ऐसा योग बहुत कम देखने को मिलता है जबकि राजेश के यहां यह एक प्रमुख विशेषता बनकर सामने आता है। इससे पता चलता है कि राजेश कितने परिपक्व कलाकार हैं। दरअसल विषय के स्तर पर कलाकारों के लिए परिपक्व होना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण उनका तकनीक के स्तर पर भी परिपक्व होना है। इसीलिए किसी भी कलाकार की कला का मूल्यांकन करते समय यह भी देखा जाना चाहिए कि वह चित्रकला के विभिन्न तकनीकी पक्षों में कितना समर्थ है। जहां तक राजेश की बात है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि जितना मजबूत उनका वैचारिक पक्ष है उतना ही मजबूत उनका तकनीकी पक्ष भी है। विषय के अनुरूप रंग-योजना तो है ही, साथ ही रंगों का प्रयोग और मिश्रण, हल्की और गहरी रंगतों का संतुलन, कैनवास के विभाजन में संगति भी उनके यहां बहुत मजबूत कही जा सकती है। अपने चित्रों में उन्होंने नेगेटिव और पाजिटिव स्पेस का भी बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल किया है। वे चित्र को पूरा भरने की जगह उसमें नेगेटिव स्पेस को पूरा महत्व देते हैं जिससे उनकी कृति और भी आकर्षक बन जाती है। दरअसल देखें तो वे अपने पूरे काम में स्पेस को लेकर बहुत सजग प्रतीत होते हैं यहां तक कि चित्र की रचना इस तरह से करते है कि कम से कम कहा जाए ताकि देखने वालों के लिए वैचारिक यात्रा का स्पेस बना रहे। दूसरे शब्दों में कहें तो राजेश अपने चित्रों में जो कुछ कहना चाहते हैं उसके लिए कम से कम आकारों या प्रतीकों का प्रयोग करते हैं ताकि प्रेक्षक उन्हें देखने के बाद अपने विचारों का विस्तार कर सके। वे कहते भी हैं कि यदि उनके चित्रों को देखने के बाद कुछ प्रतीशत लोगों में भी अपने समय के संकटों पर विचार करने का एहसास हो जाए तो वे उसे अपनी बडी सफलता मानेंगे।
वेद प्रकाश भारद्वाज
कलाकार व कला लेखक
एफ.2, एमआईजी, गौरव पैलेस
781 शालीमार गार्डन एक्सटंेशन -1
साहिबाबाद 201005 उत्तर प्रदेश
मो़ 919871699401